लखनऊ, 8 जुलाई 2025: इलाहाबाद हाईकोर्ट (लखनऊ पीठ) ने उत्तर प्रदेश सरकार के लगभग 5000 प्राथमिक विद्यालयों को नजदीकी उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में मर्ज करने के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाएं खारिज कर दी हैं। कोर्ट ने सरकार के इस नीतिगत निर्णय को बच्चों के हित में बताते हुए उसे सही ठहराया है।
न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि, “ऐसे मामलों में नीतिगत फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती, जब तक कि वह असंवैधानिक या दुर्भावनापूर्ण न हो।” कोर्ट का यह फैसला राज्य सरकार के बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा उठाए गए कदम को बड़ी राहत प्रदान करता है।
क्या है मामला?
दरअसल, उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा विभाग ने 16 जून, 2025 को एक आदेश जारी किया था। इस आदेश में राज्य के हजारों प्राथमिक विद्यालयों को छात्रों की संख्या के आधार पर उनके नजदीकी उच्च प्राथमिक या कंपोजिट स्कूलों में विलय करने का निर्देश दिया गया था।
सरकार ने इस विलय के पीछे तर्क दिया था कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा और उपलब्ध संसाधनों का बेहतर उपयोग सुनिश्चित किया जा सकेगा। सरकार का मानना था कि कम छात्र संख्या वाले स्कूलों को मर्ज करने से शिक्षकों की उपलब्धता बेहतर होगी और छात्रों को भी अधिक सुविधाओं वाले बड़े स्कूलों में पढ़ने का अवसर मिलेगा।
इस फैसले के खिलाफ कुछ याचिकाएं इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में दायर की गई थीं, जिसमें इसे छात्रों और शिक्षकों के हितों के खिलाफ बताया गया था। हालांकि, कोर्ट ने अब सरकार के तर्क को स्वीकार करते हुए इन याचिकाओं को खारिज कर दिया है। इस फैसले से यूपी में शिक्षा के क्षेत्र में संरचनात्मक बदलाव का रास्ता साफ हो गया है।