मुख्य अंश:
* सुप्रीम कोर्ट ने विनायक दामोदर सावरकर के नाम के कथित ‘दुरुपयोग’ पर रोक लगाने और उनके नाम को ‘प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम’ में शामिल करने की मांग वाली याचिका खारिज की।
* याचिका में कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा सावरकर के खिलाफ की गई टिप्पणी के लिए उन्हें सामुदायिक सेवा की सजा देने की भी मांग की गई थी।
* कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता का कोई मौलिक अधिकार प्रभावित नहीं हुआ है, इसलिए याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।
पूरी खबर:
नई दिल्ली 27 मई: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें विनायक दामोदर सावरकर के नाम के कथित ‘दुरुपयोग’ को रोकने और उनके नाम को ‘प्रतीक और नाम (अनुचित उपयोग की रोकथाम) अधिनियम, 1950’ की सूची में शामिल करने की मांग की गई थी। इसके साथ ही, याचिका में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सावरकर के खिलाफ उनकी कथित अपमानजनक टिप्पणी के लिए सामुदायिक सेवा करने की सजा देने की मांग भी की गई थी।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा कि इस मामले में उनके कौन से मौलिक अधिकार का उल्लंघन हुआ है। पीठ ने टिप्पणी की, “आपका कौन सा मौलिक अधिकार प्रभावित हुआ है? अगर कोई मौलिक अधिकार प्रभावित नहीं हुआ है, तो हम अनुच्छेद 32 के तहत इस याचिका पर विचार नहीं कर सकते।”
याचिकाकर्ता, एक वकील, ने दलील दी थी कि राहुल गांधी द्वारा सावरकर के खिलाफ की गई टिप्पणियां उनके नाम का “दुरुपयोग” हैं और इससे सावरकर के सम्मान को ठेस पहुंची है। याचिका में यह भी कहा गया था कि सावरकर एक सम्मानित स्वतंत्रता सेनानी थे और उनके नाम का इस तरह से इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता की दलीलों से सहमति नहीं जताई और यह स्पष्ट किया कि इस तरह के मामलों में मौलिक अधिकारों का उल्लंघन साबित होना चाहिए। चूंकि याचिकाकर्ता अपने किसी मौलिक अधिकार के उल्लंघन को स्थापित नहीं कर सका, इसलिए कोर्ट ने याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार नहीं किया और उसे खारिज कर दिया।
इस फैसले को राहुल गांधी के लिए एक राहत के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि उन्हें सावरकर के खिलाफ अपनी टिप्पणियों को लेकर कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ रहा था। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से यह भी स्पष्ट हो गया है कि केवल किसी के नाम के कथित ‘दुरुपयोग’ या अपमानजनक टिप्पणी के आधार पर सीधे सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर नहीं की जा सकती, जब तक कि कोई मौलिक अधिकार प्रभावित न हो।