नई दिल्ली 4 जो: संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने आज कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ लाया जा रहा महाभियोग प्रस्ताव न्यायपालिका में भ्रष्टाचार से जुड़ा मामला है और इसमें किसी भी प्रकार की राजनीति की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने जोर दिया कि सरकार इस मामले पर एक एकजुट रुख चाहती है, और इस मुद्दे पर चर्चा के लिए पूरे संसद को एक साथ आना होगा।
मामले का विवरण:
कुछ महीने पहले, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के नई दिल्ली स्थित सरकारी आवास से एक बड़ी मात्रा में नकदी बरामद हुई थी। इस घटना के बाद से ही उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित एक तीन-सदस्यीय समिति ने जांच के बाद इन आरोपों की पुष्टि की है और न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की सिफारिश की है। इस घटना के बाद उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया था, लेकिन उन्हें कोई न्यायिक कार्य आवंटित नहीं किया गया है।
किरेन रिजिजू का बयान:
मंत्री रिजिजू ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा, “न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव न्यायपालिका में भ्रष्टाचार से संबंधित मामला है। इसलिए, इसमें किसी भी तरह की राजनीति की कोई गुंजाइश नहीं है। हर पार्टी के लिए अलग राजनीतिक रुख अपनाने की कोई गुंजाइश नहीं है। हम एक एकजुट रुख चाहते हैं; संसद को एक साथ आकर इस मामले पर चर्चा करनी होगी और आगे बढ़ना होगा।” उन्होंने यह भी बताया कि सरकार ने इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ बातचीत शुरू कर दी है।
संसदीय प्रक्रिया और सरकार का लक्ष्य:
सरकार का लक्ष्य आगामी मानसून सत्र में यह महाभियोग प्रस्ताव लाना है, जो 21 जुलाई से 12 अगस्त, 2025 तक चलने वाला है। न्यायमूर्ति के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को पारित करने के लिए, संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में कुल सदस्यता के 50% से अधिक और उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से समर्थन की आवश्यकता होती है। रिजिजू ने उम्मीद जताई कि सभी दल इस महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दे पर मिलकर काम करेंगे ताकि न्यायपालिका की शुचिता बनी रहे।