नई दिल्ली: बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता बोमन ईरानी, जिन्हें ‘मुन्ना भाई एमबीबीएस’ और ‘खोसला का घोसला’ जैसी फिल्मों में उनकी दमदार भूमिकाओं के लिए जाना जाता है, ने हाल ही में अपने बचपन के संघर्षों पर खुलकर बात की है। एक ऐसा खुलासा, जो हमें बताता है कि कैसे उन्होंने डिस्लेक्सिया जैसी चुनौती का सामना किया और उसे अपनी पहचान बनने से रोक दिया।
बचपन में गणित से ‘दुश्मनी’, पर सीखने की ललक ने बदल दी जिंदगी!
बोमन ईरानी ने बताया कि बचपन में उन्हें गणित समझने में बेहद मुश्किल होती थी। उन्हें संख्याएं और अंकगणित याद नहीं रहते थे। लेकिन, जैसा कि उन्होंने खुद कहा, “क्या यह मुझे परिभाषित करता है?” उनका मानना है कि उनकी संवाद करने की क्षमता, कहानियां सुनाने की कला और अपनी आवाज का उपयोग करने की योग्यता, उन्हें कहीं अधिक परिभाषित करती है।
हर व्यक्ति है खास: अपनी “क्षमता” का करें सही उपयोग!
ANI से खास बातचीत में बोमन ईरानी ने इस बात पर जोर दिया कि कोई भी दो व्यक्ति एक जैसे नहीं होते। उन्होंने कहा, “किसी भी इंसान का डीएनए एक जैसा नहीं होता…उनकी संरचना, या शायद उनका डिस्लेक्सिया, या कुछ योग्यता, या बायां मस्तिष्क, या दायां मस्तिष्क, या ऑटिज्म, लाइट स्पेक्ट्रम, हैवी स्पेक्ट्रम के विभिन्न रूप हैं। और हर किसी को अपनी योग्यता या अपनी अक्षमता का अपने लाभ के लिए उपयोग करना चाहिए।” उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि वे अपनी ‘अक्षमता’ को कभी भी खुद को कमतर न समझें, बल्कि उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करें जिनमें वे वास्तव में उत्कृष्ट हैं।
11 साल की उम्र में देखा था ‘वो’ फिल्म का सीन, जो बना प्रेरणा!
बोमन ईरानी ने बताया कि जब वह 11 साल के थे, तब उन्होंने एक फिल्म में एक ऐसा दृश्य देखा था जिसने उन्हें प्रेरित किया। उन्हें तब भी वह दृश्य स्पष्ट रूप से याद है, क्योंकि शायद किसी विकलांगता या क्षमता के कारण ऐसा हुआ था। यही वजह है कि वह कहते हैं, किसी को कभी भी किसी से कमतर नहीं समझना चाहिए।
‘खोसला का घोसला’ का किस्सा: जब सबने कहा ‘नहीं’, तो बोमन ने कहा ‘हाँ’!
अपने करियर की यादगार भूमिकाओं में से एक, दिबाकर बनर्जी की फिल्म ‘खोसला का घोसला’ में ‘किशन खुराना’ का किरदार निभाने के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। दक्षिण मुंबई के पारसी होने के बावजूद, फिल्म निर्माताओं को उन्हें एक पंजाबी व्यवसायी की भूमिका के लिए चुनने में संदेह था।
बोमन ईरानी ने बताया, “हर कोई मेरे इस किरदार को करने को लेकर काफी संशय में था, क्योंकि मैं साउथ बॉम्बे का एक पारसी हूं और मैं दिल्ली के एक पंजाबी का किरदार निभा रहा हूं। और, ये नहीं कर पाएगा। इसलिए, मैंने कहा नहीं, नहीं, नहीं, जिस पल आप कहते हैं कि नहीं कर पाएगा ना, तो मैंने चैलेंज ले लिया। खत्म हो गया!”
और फिर क्या था, उन्होंने कड़ी मेहनत की और उस किरदार को इस तरह निभाया कि किसी को यकीन नहीं हुआ कि वह साउथ बॉम्बे के एक पारसी हैं!
बोमन ईरानी की यह कहानी न केवल डिस्लेक्सिया से जूझ रहे लोगों के लिए प्रेरणा है, बल्कि यह हर उस व्यक्ति के लिए एक सीख है जो अपनी किसी भी कमी को अपनी पहचान मान लेता है। उनकी यह यात्रा हमें सिखाती है कि सच्ची ताकत हमारी क्षमताओं को पहचानने और उनका सदुपयोग करने में है, न कि हमारी कमियों से खुद को परिभाषित करने में।
अब बोमन ईरानी ‘डिटेक्टिव शेरदिल’ में आएंगे नज़र, जो आज से ज़ी5 पर स्ट्रीम हो रही है।