त्योहारों के आते ही अर्थव्यवस्था पर लगा जंग साफ हो जाता है, हिंदू धर्म में अर्थ को एक महत्वपूर्ण पुरुषार्थ माना गया है। हिंदू त्योहार इस बात के उद्घोष हैं कि भौतिक सुख सुविधा का भोग धर्म के जरिये ही हो सकता है। बड़े त्योहारों और चारों धाम की यात्रा से लेकर गाँव के चौरा पूजन तक का कर्म देश की अर्थव्यवस्था को संजीवनी देता है।
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT)) ने एक आंकड़े में बताया है कि पिछली दीपावली पर करीब ढाई लाख करोड़ रुपये की खरीद हुई है। इन आंकड़ों में फुटकर बिक्री को भी शामिल लें तो लगभग तीन लाख करोड़ के आस पास का आंकड़ा बैठता है।
पाकिस्तान का कुल सालाना बजट लगभग 7 लाख करोड़ है, भारत में एक दीपावली के ही त्योहार का बजट तीन लाख करोड़ रुपये है।
त्योहार केवल सांस्कृतिक ही नहीं बल्कि आर्थिक केंद्रबिंदु भी हैं। विदेशी इस बात को अच्छे से समझते थे कि इन त्योहारों को निर्धारित करने वाले मंदिरों को तोड़ दिया जाए तो भारत की रीढ़ टूट जाएगी। आप किसी मंदिर में जाएं वहाँ तिथि, वार, त्योहार, व्रत, उपवास, कर्म इत्यादि का दैनिक विवरण पट्टिका पर प्रतिदिन लिखा जाता है। त्योहार जीवन शैली को नियमित करते हैं। धर्म अर्थ कामनाओं की पूर्ति और मुक्ति की राह बताते हैं, जीवन मे उल्लास भरते हैं।
आपका त्योहार मनाना आपको आध्यात्मिक,भावात्मक रूप से पुष्ट तो करता ही है पर देश को एक कदम आगे भी बढ़ाता है।
एक बात और.. हिंदू धर्म व्यक्ति के पैदा होने से मृत्यु तक उल्लास परक है, मातम की कोई जगह नहीं है। यहाँ मृत्यु भी उत्सव है ठीक जन्म की तरह, पूरे गाजे बाजे से यात्रा निकाली जाती है।
विकास टाइम्स के लिए पवन विजय का लेख