26 अगस्त,डॉ सत्या जांगिड़ की जीवन यात्रा का समापन हुए 8 वर्ष पूर्ण हो गये । डॉ जांगिड़ वास्तव में एक शिक्षा साध्वी थी जिन्होने अपनी साधना के लिए शिक्षा क्षेत्र को अपना साधन बनाया साथ ही उन्होने समाज सुधार और महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए भी बहुत काम किया ।
डॉ सत्या जांगिड़ का प्रारम्भिक जीवन :

डॉ सत्या जांगिड़ का जन्म 10 अगस्त 1938 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में हुआ था । उन्होने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) से अर्थशास्त्र में परास्तानक की डिग्री ली ,बहुत कम लोग होते हैं जिनको यह सौभाग्य प्राप्त होता है कि जहां से उन्होने शिक्षा ग्रहण की हो वहीं पर उन्हे शिक्षा देने की भी ज़िम्मेदारी मिले, डॉ सत्या जांगिड़ उनमें से ही एक थीं जिन्हे 11 नवंबर 1964 को प्राध्यापक के रूप में वहीं पढ़ाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जहां वो पढ़ी थीं ।
डॉ सत्या जांगिड़ का विवाह 10 मार्च 1966 को भारतीय जन संचार संस्थान दिल्ली (IIMC) में पत्रकारिता विभाग के प्रमुख रहे डॉ रामजीलाल जांगिड़ से हो गया । शादी के बाद उन्हें अपनी काशी की यात्रा को विराम देना पड़ा और वह देश की राजधानी दिल्ली आ गईं ।
1 अगस्त 1966 से उनकी शिक्षा की यात्रा दिल्ली में प्रारम्भ हो गई जब उन्हे डिफेंस कालोनी के कमला नेहरू कालेज में प्राध्यापिका के पद पर चुन लिया गया । सत्या जांगिड़ 1967 में डॉ सत्या जांगिड़ बन गईं जब उन्हे Phd की उपाधि मिली।
डॉ सत्या जांगिड़ और कालिंदी महिला कालेज पूर्वी पटेल नगर :

कालिंदी महिला कालेज पूर्वी पटेल नगर का उनके जीवन में विशेष स्थान रहा 25 जुलाई 1968 को वो इस कालेज से जुड़ी फिर जीवन पर्यंत इसी से जुड़ी रहीं । चार साल के अल्प समय में ही उनको 21 नवंबर 1972 को कालिंदी महिला कालेज की संचालन समिति में शिक्षिकाओं का प्रतिनिधि नियुक्त कर दिया गया । 29 मार्च 1990 को वह कालेज की कार्यवाहक प्राचार्य बनीं ।
केवल शिक्षाविद ही नहीं समाज सेविका भी थी डॉ सत्या जांगिड़ :
डॉ जांगिड़ केवल शिक्षाविद ही नहीं थी बल्कि वो समाज की भलाई के लिए भी अपनी आवाज उठाती रहती थीं । दिल्ली के आनंद पर्वत और सराय रोहिल्ला में उपरगामी सेतु का निर्माण भी उनके प्रयासों से और उनकी आवाज उठाने के बाद ही संभव हो पाया ।
डॉ सत्या जांगिड़ ने सरकारी पत्रिका,योजना में एक लेख लिखा कि किस तरह रेलवे फाटक की वजह से सरकार का प्रति घंटे 1 करोड़ से ज्यादा का नुकसान हो रहा है । डॉ जांगिड़ के प्रयासों से ही यह सवाल देश की संसद में भी उठाया गया, इसके बाद ही उन दोनों जगह पर ब्रिज का निर्माण हुआ ।
उन्होने अपने समय में स्वयं के प्रयासों से करोल बाग क्षेत्र में गरीब महिलाओं का एक सर्वे करवाया जिससे उनकी सामाजिक और आर्थिक स्थितियों का आंकलन किया जा सके और उनको सरकारी योजनाओं का लाभ दिलवाया जा सके ।
शिक्षा साध्वी थीं डॉ सत्या जांगिड़ :
आज के दौर में जब भी साल का नया कलेंडर आता है तो सरकारी कर्मचारी सबसे पहले यह देखते हैं कि वर्ष में कितनी सरकारी छुट्टियाँ पड़ रहीं है कोई ऐसी छुट्टी तो नहीं पड़ रही जिस दिन रविवार हो और उनकी छुट्टी मारी जाये,ऐसे में डॉ सत्या जांगिड़ का जीवन एक प्रेरणा देने वाला है । उन्होने अपने 33 वर्ष के सेवाकाल में एक भी छुट्टी नहीं ली और ना ही अपने कालेज में कभी विलंब से पहुंची ।
अनुकरणीय है डॉ सत्या जांगिड़ का जीवन :
साठ के दशक में जब महिलाओं में शिक्षा के प्रति ना तो जागरूकता थी,ना समाज में महिलाओं को पढ़ने पढ़ाने का चलन था, डॉ जांगिड़ का क्षेत्र पूर्वाञ्चल तो और भी पिछड़ा हुआ था ऐसी स्थित में गाजीपुर से बनारस और बनारस से फिर दिल्ली तक की उनकी यात्रा उपलब्धि भरी तो है ही अनुकरणीय भी है ।
डॉ सत्या जांगिड़ का देहावसान :
एक महान शिक्षाविद,एक विनम्र और लोकप्रिय समाज सेविका लंबी बीमारी के बाद 26 अगस्त 2016 को 77 वर्ष की उम्र में अपनी जीवन यात्रा समाप्त कर परम तत्व में विलीन हो गयीं ।
