मेघालय यात्रा वृतांत : मेघों का घर, मेघालय प्रकृति की अद्भुत देन है। खासी, गारो और जयंतिया की तीन पहाड़ियों में बसा मेघालय, यहां की इन्ही तीन जनजातियों की भी पहचान है। मातृसत्ता की सामाजिक पहचान वाले मेघालय के लोग सरल, हंसमुख, मिलनसार और मीठी मुस्कान से किसी का भी दिल मोहित कर सकते है।
मेघालय के राज्यपाल से भेंट : Meeting With Governor Of Meghalaya
मेघालय के राज्यपाल फागू चौहान अत्यंत सरल, सीधे और उत्तर प्रदेश के सधे राजनीतिज्ञ है। बिहार के राज्यपाल के बाद फागू चौहान को बंगाल के सीमावर्ती मेघालय की जिम्मेदारी दी गई। लखनऊ के 8 पत्रकारों का दल मेघालय पहुंचा तो राज्यपाल की गरिमा के बाद भी उन्होंने सहृदयता और सरलता से सबको अपनेपन का एहसास कराया। मुलाकात के साथ ही पुराने दिनों की चर्चा भी खूब हुई। पत्रकारों के दल में विजय शंकर पंकज, अविनाश शुक्ला, मनोज मिश्रा, श्रीधर अग्निहोत्री, विजय त्रिपाठी, अशोक चकलादर, नितिन श्रीवास्तव तथा आलोक द्विवेदी शामिल थे।
गुवाहाटी से शिलांग :
लखनऊ से गुवाहाटी (असम) से पत्रकारों का पत्रकारों का दल मेघालय की राजधानी शिलांग को रवाना हुआ। पहाड़ी रास्ता होने के कारण 100 किलोमीटर की दूरी तय करने में लगभग 4 घंटे का समय लगा। सहयोगी मनोज मिश्रा इस इलाके से परिचित थे। उन्होंने शिलांग से पहले उमियम झील दिखाया। यहां पर सभी ने बोटिंग की। यात्रा की शुरुआत में ही विशाल झील में बोटिंग ने और अधिक रोमांचित कर दिया तथा आगे की यात्रा के लिए एक नई ऊर्जा भर दी। शाम को शिलांग पहुंचते ही राजभवन में राज्यपाल के साथ चाय पर चर्चा हुई। दूसरे दिन पुनः राज्यपाल से मुलाकात का समय निर्धारित हुआ। उसके बाद सभी लोग विश्राम कक्ष की तरफ चले गए।

दूसरे दिन मुलाकात में मैंने अपनी पुस्तक “युगपुरुष की भूख” भेंट की तो वहीं अविनाश शुक्ला ने अपना समाचार पत्र “राष्ट्रीय स्वरूप” की प्रति प्रस्तुत की। राजभवन का आतिथ्य अविस्मरणीय रहा। राज्यपाल के सचिव बीडीआर तिवारी ने भी अपनापन दिखाया। श्री तिवारी मूलतः यूपी के बस्ती जिले के है।
मेघालय के राजभवन का इतिहास :
शिलांग को वर्ष 1874 में प्रांतीय सरकार की राजधानी के रूप में चुना गया था जब असम को मुख्य आयुक्त के रूप में बंगाल से अलग किया गया था। 1897 में शिलांग में भयंकर भूकंप आया। जिसमें गवर्नमेंट हाउस क्षतिग्रस्त हो गया। 1898 में नए राजभवन के लिए स्केच योजना तैयार किया गया। शिलांग का राजभवन अद्भुत है। राजभवन के निर्माण में सीमेंट पत्थर का उपयोग नहीं हुआ है। पूरा राजभवन लकड़ी से बना है जबकि इसकी नींव लोहे की है जो भूकंप रोधी है। राजभवन की नक्काशी और सजावट आकर्षक है। इसके निर्माण पर उस समय 1लाख 27 हजार का खर्च आया था। नया सरकारी भवन 1903 में बनकर तैयार हुआ था। अंग्रेजी शासन काल में पूर्वोत्तर के सात राज्यों सहित बंगाल और बांग्ला देश का शासन शिलांग से ही चलता था।
शिलांग से चेरापूंजी :
दूसरे दिन हम सभी शिलांग से चेरापूंजी के लिए रवाना हुए। मेघालय की प्रकृति के अनुसार रास्ते भर मेघ बरसते रहे और बादल अठखेलियां करते रहे। पूरे रास्ते जगह-जगह झरने और हरी पहाड़िया, खूबसूरत घाटी के नजारे मन को मोहते रहे। यहाँ पर प्रसिद्ध सेवन सिस्टर के नाम से विख्यात झरने अपनी आवाज और लयबद्ध पानी के बहाव से प्रेम गाथा सुनाते रहे। बादलों के घनेपन से एक बार लगा की हम इन झरनों को देख नही पाएंगे, लेकिन प्रकृति ने रुख बदला। बादल हटे और सेवन सिस्टर फाल्स का नजारा देखने लायक था। हम सभी सेवन सिस्टर के उदगम स्थल पर भी गए। इको पार्क और चेरापूंजी हॉलिडे रिजॉर्ट की सैर हुई। अरवाह गुफा भी गए लेकिन भारी बारिश और जलभराव की वजह से अंदर नहीं जा सके। गाड़ी में छतरी रखी थी, इसलिए पानी में घूमने का आनंद ही कुछ और था।
यात्रा का तीसरा दिन :
तीसरे दिन शिलांग में रात से सुबह तक पानी बरसता रहा। देर से निकलने के कारण हम एयरफोर्स इलाके में शिलांग पीक पर गए। यहां से शिलांग का अद्भुत नजारा दिखा। एलीफैंट फॉल देखने के बाद चाय बागान की सैर की उसके बाद सभी डॉन बॉस्को म्यूजियम गए। यह म्यूजियम मेघालय में ईसाई धर्म के प्रभाव को दिखाता है। म्यूजियम में राजीव गांधी, सोनिया, राहुल तथा प्रियंका को ईसाईयत के प्रभाव को बढ़ाने के लिए महिमा मंडित किया गया है। इस म्यूजियम का निर्माण राजीव गांधी ने कराया था। शाम को शिलांग की मशहूर पुलिस बाजार में सैर की गयी। रात्रि में यहां का म्यूजिक कंसर्न रोमांचित करता है।
यात्रा का चौथा दिन :
चौथे दिन मौसम साफ होते ही हम बांग्लादेश की सीमा पर डॉवकी चौकी पहुंचे। जीरो प्वाइंट पर भारत के सीमा सुरक्षा बल और बांग्ला देश के सुरक्षा बलों के जवानों से मिले। इस रास्ते में भारतीय सीमा में ट्रक की भीड़ जाने वालो को परेशान करती है। पत्थर से भरे ओवर लोड ट्रकों ने सड़क को बर्बाद कर दिया है। एक भारतीय सुरक्षा कर्मी ने बताया कि प्रतिदिन पत्थर लदे एक हज़ार ट्रक बांग्लादेश देश जाते है। खदान माफियाओं के कारण पहाड़ बेदर्दी से खोदे जा रहे है। जयंतियां पहाड़ियों की स्थिति ज्यादा खराब है। यहाँ से लौटते हुए मौलिन्नोंग विलेज, बोर्हिल्ल फॉल्स और क्रांग सूरी वाटरफॉल देखते हुए वापस शिलांग लौट आये।
पांचवें दिन हम शिलांग से वापस गुवाहाटी लौटे। दोपहर में सभी ने बाला जी मंदिर और मां कामाख्या का दर्शन पूजन किया। रविवार होने के कारण गोहाटी का मुख्य बाजार बंद था लेकिन पलटन बाजार घुमा गया। दूसरी सुबह हम गुवाहाटी से लखनऊ लौट आए। मेघालय की यह यात्रा शानदार और अविस्मरणीय रही
~ विजय शंकर पंकज