DMK नेता दयानिधि मारन का UP,बिहार पर बयान कि यूपी,बिहार वाले लोग तमिलनाडु में टायलेट या नाले साफ करते हैं । DMK नेताओं को अचानक हिन्दी पर,सनातन धर्म पर और यूपी बिहार वालों पर सनक क्यों सवार हो गई है ? BJP तो 2014 से केंद्र मे सत्ता में है,मोदी पहले भी कम मजबूत नहीं थे फिर अचानक DMK नेताओं के बयानों की बाढ़ अब क्यों आ रही है ? आप अगर थोड़ा दिमाग पर ज़ोर डालोगे तो समझ आ जाएगा ।
इन बयानों के कारणों पर जाने से पहले एक बात कहना चाहूँगा कि द्यानिधि मारन के बयान से UP,Bihaar वालों को आहत होने की जरूरत नहीं है । दयानिधि मारन कोई संत महात्मा या दूध के धुले नहीं हैं जो यूपी बिहार वालों को सर्टीफिकेट बाटेंगे । ये वही दयानिधि मारन है जिसे 2G के हजारों करोड़ के घोटाले में आरोपी बनाया गया था,और अभी भी वो उस आरोप से मुक्त नहीं हुए हैं सिर्फ जमानत पर हैं ।
क्यों लग रहा है ये Congress का खेला है ?
DMK नेताओं के बयानों की बाढ़ यूं ही नहीं आ गई है,चाहे वो उदयनिधि स्टालिन का संतातन धर्म को डेंगू,मलेरिया से तुलना वाला बयान हो चाहे उनके सांसद का का लोकसभा में हिन्दी भाषी प्रदेशों को गौ मूत्र पीने पीने वाले प्रदेश बताने वाला बयान हो,इन सभी बयानों के पीछे तमिलनाडु में DMK की जूनियर पार्टी कांग्रेस का हाथ नजर आता है । इन बयानों के पीछे कांग्रेस की मिलीभगत के प्रारम्भिक निम्न कारण लगते हैं ….
- कर्नाटक और तेलंगाना की जीत और अमेठी की राहुल गांधी की हार
- हिन्दी भाषी प्रदेशों में कांग्रेस की अप्रत्यासित और बुरी हार
- कांग्रेस की Divide and Rule, बांटो और राज करो की नेहरू वादी सोच
कर्नाटक और तेलंगाना की जीत और अमेठी की राहुल गांधी की हार :
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को अंदेशा हो गया था कि उनकी अमेठी सीट से जीत सुनिश्चित नहीं है इसीलिए उन्होने दक्षिण के राज्य की वायनाड सीट से भी पर्चा भरा था । राहुल गांधी और कांग्रेस का अंदेशा सही निकला और राहुल गांधी अमेठी का चुनाव स्मृति ईरानी से हार गए और यहीं से उनका दक्षिण का प्रेम जाग गया तभी उन्हे दक्षिण के वोटर उत्तर के और हिन्दी भाषी वोटरों से ज्यादा समझदार लगने लगे ।
हिन्दी भाषी प्रदेशों में कांग्रेस की अप्रत्यासित और बुरी हार
लोकसभा 2024 के चुनाव से लगभग छह महीने पहले 3 राज्यों मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा के नतीजों ने कांग्रेस को बिल्कुल झकझोर कर रख दिया । कांग्रेस हिन्दी भाषी तीनों राज्यों में बुरी तरह से चुनाव हार गई,छत्तीसगढ़ और राजस्थान में उनकी अपनी सरकारें चल रही थी और मध्यप्रदेश में उन्हें पूरी उम्मीद थी कि जनता अब अठारह सालों से शिवराज की भाजपा सरकार से ऊब चुकी है । इस तरह वो मानकर चल रहे थे कि तीन राज्यों में कम से कम दो में उनकी सरकार बनेगी,लेकिन वो तीनों राज्य हार गए ।
कांग्रेस की Divide and Rule, बांटो और राज करो की नेहरू वादी सोच
कांग्रेस की आजादी के बाद से ही यह सोच रही है कि नेहरू गांधी परिवार केवल राज करने के लिए ही पैदा हुआ है । कांग्रेस सत्ता के लिए किसी भी हद तक जा सकती है । सभी को मालूम है कि आजादी के बाद अगर देश का बंटवारा हुआ तो उसमें भी नेहरू जी की अति महत्वाकांक्षा भी काफी हद तक जिम्मेदार थी । नेहरू के बाद भी कांग्रेस ने सत्ता के लिए बांटो और राज करो की नीति अपना रखी है,चाहे वो जाति के आधार पर बांटना हो या धर्म के आधार पर ।
कांग्रेस ने उत्तर के राज्यों से उम्मीद छोड़ दी है
अभी तीन राज्यों के चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस ने उत्तर भारत के राज्यों से उम्मीद छोड़ दी है,उत्तरप्रदेश में कांग्रेस अपनी जमीन काफी पहले खो चुकी थी,अब ये तीन राज्य भी हाथ से निकलने के बाद उत्तर भारत में उन्होने हार मान ली है । कर्नाटक की जीत के बाद तेलांगना की जीत ने कांग्रेस का ध्यान अब सिर्फ दक्षिण के राज्यों पर कर दिया है,वहाँ उन्हे मुसलमानों का थोक में वोट भी मिल रहा है ।
कांग्रेस अब चाहती है कि देश में उत्तर और दक्षिण का बंटवारा हो उत्तर में उनके पास खोने को कुछ बचा नहीं है और दक्षिण में उनके पास पाने को बहुत कुछ है ।
कांग्रेस इस उत्तर दक्षिण की खाई को और चौड़ा करना चाह रही है जिससे उसका वोट बैंक दक्षिण में और मजबूत हो सके और इसके लिए उसने DMK जैसी अपनी साझीदार पार्टियों को आगे कर दिया है । DMK जो सनातन धर्म का अपमान कर रही है,हिन्दी भाषियों का अपमान कर रही है उसमें पूरी तरह से कांग्रेस का हाथ है और उसी का ये सब खेला है ।
ये तीर है या तुक्का वक्त बताएगा