विभिन्न क्षेत्रों के विशिष्ट अतिथियों को Purple Pen संस्था द्वारा किया गया सम्मानित :
संस्था की अध्यक्ष ने अपने उद्बोधन द्वारा Purple Pen की उपलब्धियों पर डाला प्रकाश :

Purple Pen द्वारा प्रकाशित स्मारिका ‘ साहित्य सेतु ‘ का हुआ लोकार्पण

गीता भाटिया, सुरेन्द्र पाल वैद्य, सुश्री वीना तँवर, रजनी रामदेव, डाॅ. कविता सूद और अश्विनी कुमार को पर्पल पेन पटल पर सक्रिय लेखन के लिए वर्ष 2023 का ‘साहित्य सेवी सम्मान’ प्रदान किया गया। सतत संचालन के लिए सुश्री मीनाक्षी भटनागर को ‘साहित्य संचेतक सम्मान’ तथा शालिनी शर्मा को पर्पल पेन ‘उदित सितारा सम्मान’ 2023 भी दिए गए।
कला के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर उल्लेखनीय प्रदर्शन के लिए) श्री सुरेशपाल वर्मा जसाला को ‘कला भूषण सम्मान’ तथा साहित्य की दीर्घकालीन सेवा के लिए वरिष्ठ साहित्यकारों — डाॅ. रंजना अग्रवाल, श्री अनिल वर्मा मीत, श्री रामकिशोर उपाध्याय एवं सुश्री रेखा जोशी को पर्पल पेन ‘साहित्य गौरव सम्मान’ से अलंकृत किया गया।
बहुभाषी काव्य गोष्ठी ने बांधा समा :
बहुभाषी काव्य गोष्ठी ‘जश्न-ए-अल्फ़ाज़’ कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण रही। इस गोष्ठी में हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, अवधी, भोजपुरी, सिरायकी, ब्रज भाषा सहित अंग्रेज़ी कविताओं का श्रेष्ठ रचनापाठ हुआ। अपने कविता पाठ से मंचासीन अतिथिगण ने भी कार्यक्रम को और गरिमा प्रदान की।
अवधी भाषा में ‘हिन्दी दिवस’ विषय पर एक सुन्दर व्यंग्य गीत ओम प्रकाश शुक्ल ने प्रस्तुत किया —
“दफ्तर दफ्तर सबय मनावँय हिन्दी कय पखवारा
हिन्दी कय पखवारा,भइया हिन्दी कय पखवारा
हिन्दी गावँय हिंदी पहिनय हिन्दिन मा संसारा
साँझ सवेरे लेंय हचकिके हिन्दी कय चटखारा,,
आवा हिन्दी कय पखवारा,भइया हिन्दी कय पखवारा”
अवधी में ही सुषमा शैली ने पेड़ों की अंधाधुन कटाई और पर्यावरण के मुद्दे पर अपनी बात कुछ यूँ कही —
“बईठो दुल्हिन पाँव पसारे
अब ना गिरहैं पात ओसारे
अमवा संगे निमिइउ कटिगै
भउजी तोहरो कारन घटिगै
अब ना अइहैं छाँव दुआरे
अब ना गिरहैं पात ओसारे”
श्रावस्ती से पधारे सुकवि मनोज मिश्रा कप्तान ने सुमधुर कंठ से कई छंद प्रस्तुत किये। बाल कृष्ण पर ब्रज भाषा का उनका यह छंद विशेष पसंद किया गया —
“एक दिना इक ग्वालिन के घर में घनश्याम जु घात लगायो।
सांकलि ठेलि दई झट सों पट खोलि सबै जन भीतर आयो।
छींकन ते लटकी मटकी झट सों पटकी मिलि माखन खायो।
नंद के लाल कमाल किए मिलि ग्वालहिं बाल धमाल मचायो।”
बबली सिन्हा वान्या ने भारत रत्न अटल बिहारी बाजपाई की पुण्यस्मृति को नमन करते हुए यह हिन्दी कविता पढ़ी —
“धन्य हुई माँ भारती तुम जैसे पुत्र को पाने से
पत्रकार तुम कवि, प्रवक्ता, ओज भरा था तन-मन में
रोम-रोम में बहती करुणा, तुम दया-भाव के सार हुए
नमन अटल तुमको मिलकर करते, तुम भारत के गौरव इतिहास बने”
अपनी दादी को याद करते हुए अंजू खरबंदा ने सिरायकी में जो कविता प्रस्तुत की, उस ने सभी को अत्यंत भावुक कर दिया —
“बऊँ याद आन्दे हो तुसां अम्मा
तुआडी मिठड़ी गालहीं ते तुआडी डांट
तुआडा सांकू समझावणा
ते कडइ कडइ रुस रुस वंजणा
बऊँ याद आन्दे हो तुस्सा अम्मा”
छत्र मल छाजेड़ ‘फक्कड़’ ने एक मनहर राजस्थानी गीत पढ़ा —
“सावणियै थां बिना भंवर सा, सूनो लागै टापरो
पसवाड़ो फेरूं तो जुलमी, ठंडो लागै चादरों…”
कुमाउँनी गीत के माध्यम से मनोज कामदेव ने सभी को देवभूमि उत्तराखंड के पर्यटक स्थलों और संस्कृति की झलक दिखाई —
याद मैंके आनी पहाड़ा,
वो हिमाला, वो पहाड़ा।।
नान तिना, बैनी कैजा,
गाड़ गधेरा, गोरु बाछा,
पार भिड़ा, हैरी किल्मोड़ा
नैनीताला वो अल्मोड़ा।।
जगदीश मीणा के गीत के बोल कुछ इस प्रकार थे —
“बिन मुहब्बत जिस्म ये खंडर पुराना हो गया
मेरे दिल को मुस्कुराए इक ज़माना हो गया”
पंचकुला से वार्षिक उत्सव में शामिल होने आये कवि अश्विनी कुमार ने गीतिका के सुन्दर युग्म प्रस्तुत किये —
“दूसरों पर दोष मढ़ने से सुधरता कुछ नहीं
और बढ़ जाती दरारें, यों सँवरता कुछ नही”
सुरेन्द्रपाल वैद्य, जो सुदूर मंडी (हि.प्र.) से जश्न-ए-अल्फ़ाज़’ में सम्मिलित होने आये थे, ने भारत देश के गौरव का गुणगान करते हुए अपने हिन्दी गीत में कुछ यूँ कहा —
“बढ़ रहा स्वर्णिम लिए आभा हमारा देश भारत।
शक्तिशाली है अखिल जग का सहारा देश भारत।”
पूर्व आई.आर.ए.एस रामकिशोर उपाध्याय ने अपनी अंग्रेज़ी कविता में ईश्वर को सम्बोधित करते हुए अपने कुछ प्रश्न रखे —
“God, You gave me springs
Of sweet water and eternal fluid to flow ceaselessly
To quench my thirst and cleanse my ignorance
Passing through my consciousness
Towards thy door in search of nectar of immortality”
वसुधा कनुप्रिया ने भी ‘प्रकृति’ विषय पर अपने भाव इस प्रकार अंग्रेज़ी में व्यक्त किये —
“I look at the green meadows,
And the expanse of the blue sea
Wild flowers dance to the winds
How enchanting, nature could be
I take a long walk in the grassland
Gently touching tender petals I see
Breathing deep, I inhale love elixir
I feel elated, happy, carefree”
ज़ीरकपुर (पंजाब) से पधारी डॉ. कविता सूद ने काँगड़ी बोली में एक कविता पढ़ी और सभी को शिमला की सैर करा लाईं —
“माल रोडे दे चक्कर कटणे, मुंडु-कुड़ियां सारे दिखणे।
भेडुआं साई फुदकदियां छोरियां, चुक्की लैंदियां मणा दियां बोरियां।
जे न खादे हिमानी दे छोले-भटूरे, तां सिमले दी सैर मनदे अधूरे।”
वीना तंवर के सरस हरियाणवी गीत का सभी ने भरपूर आनंद लिया —
“रै एक सपना आवै, सपने में दुविधा भारी ।
सपने मै निरोगी होजा, किसे कै होजा कोए बीमारी,
मर जा रोवणपीटण लागे, रात लिकड जा उसकी सारी।”
देश के विभिन्न राज्यों और दिल्ली/एनसीआर के कविगण ने बहुभाषी काव्य गोष्ठी में अनेक रस और रंग की कविताओं का अपनी -अपनी बोली/भाषा में पाठ कर भारत के वैविध्य की सुन्दर झांकी प्रस्तुत की। वसुधा कनुप्रिया के इस अनुपम प्रयोग को मंच और सदन द्वारा ख़ूब सराहा गया।
संस्था की संस्थापक को उनके सराहनीय कार्य के लिए किया गया सम्मानित :
