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मैं जा रहा हूँ मेरा इन्तेज़ार मत करना मेरे लिये कभी भी दिल सोगवार मत करना मैं एक रोज़ बहरहाल लौट आऊँगा तुम उँगुलियों पे मगर दिन शुमार मत करना अनवर जलालपुरी
खुदगर्ज़ दुनिया में आखिर क्या करें ! क्या इन्हीं लोगों से समझौता करें !! शहर के कुछ बुत ख़फ़ा हैं इस लिये चाहते हैं हम उन्हें सजदा करे ! अनवर जलालपुरी
टूटी है मेरी नींद, मगर तुमको इससे क्या बजते रहें हवाओं से दर, तुमको इससे क्या औरों का हाथ थामो, उन्हें रास्ता दिखाओ मैं भूल जाऊँ अपना ही घर, तुमको इससे क्या परवीन शाकिर
जुर्म किसका था, सज़ा किसको मिली अब किसी से ना मोहब्बत करना घर का दरवाज़ा खुला रखा है वक़्त मिल जाये तो ज़ह्मत करना परवीन शाकिर
न सोचा न समझा न सीखा न जाना मुझे आ गया ख़ुदबख़ुद दिल लगाना ज़रा देख कर अपना जल्वा दिखाना सिमट कर यहीं आ न जाये ज़माना मीर तकी मीर
दिल गया तुम ने लिया हम क्या करें जानेवाली चीज़ का ग़म क्या करें बक्श दें प्यार की गुस्ताख़ियां दिल ही क़ाबू में नहीं, हम क्या करें दाग देहलवी
लुत्फ़ इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है रंज भी इतने उठाए हैं कि जी जानता है जो ज़माने के सितम हैं वो ज़माना जाने तूने दिल इतने दुखाए हैं कि जी जानता है दाग देहलवी